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विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला, पांढुर्णा, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश (Gotmar Mela Pandhurna, Chhindwara, Madhya Pradesh)

गोटमार मेला, मध्य प्रदेश के किस जिले में लगता है? इस प्रश्न का जवाब आप सभी को इस लेख में मिलेगा। छिंदवाड़ा जिले का विश्व प्रसिद्ध मेला, गोटमार मेला जो पांढुर्णा में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से 90 किलोमीटर दूर पांढुर्णा तहसील में गोटमार मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है। 

यह छिंदवाड़ा जिले का एकमात्र विश्व प्रसिद्ध, ऐतिहासिक मेला है। जिसे गोटमार मेले के नाम से जाना जाता है। 

मराठी भाषा में छोटे-छोटे पत्थरों को गोट कहा जाता है। गोटमार मेला अर्थात पत्थर मार मेला। 

श्री आर.व्ही.रसेल, I.C.S द्वारा संपादित छिंदवाड़ा जिले के गजेटियर (सन् 1907ई.) में भी गोटमार मेले का उल्लेख किया गया है। इसमें उल्लेख किया है कि पोला त्यौहार की रात्रि में गांव का कोटवार एक पलाश का वृक्ष लाकर जाम नदी के बीच में गाड़ देता है। 

अगले दिन पांढुर्णा एवं सांबरगांव, दोनों पक्षों के बीच पत्थर मारते हुए पलाश वृक्ष पर अधिकार का प्रयास किया जाता है। गोटमार मेला, चंडी देवी के सम्मान में आयोजित किया जाता है। अनुमान है कि गोटमार मेला की परंपरा लगभग 200 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। राजा जाटवा शाह चंडी देेवी का भक्त था। मंदिर, जाटवा शाह (देवगढ़ क़िला) द्वारा स्थापित होना अनुुमानित है। यह स्थल जाटवा कालीन है।
                  
गोटमार मेला प्रतिवर्ष भादो मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या अर्थात पोला त्यौहार के दूसरे दिन मनाया जाता है।

गोटमार मेला का इतिहास (Gotmar Mela History In Hindi) -


(Gotmar Mela Story in Hindi)

जाम नदी के एक ओर पांढुर्णा तथा दूसरी ओर साबरगांव स्थित है। जनश्रुति अनुसार प्राचीन समय में पांढुर्णा गांव का एक युवक का प्रेम साबरगांव की एक युवती से हो गया। 

परंतु कन्या पक्ष द्वारा विवाह अनुमति नहीं दिये जाने के कारण युवक द्वारा अवसर पाकर पोले के दूसरे दिन युवती को अपने साथ भगाकर पांढुर्णा लाने लगा।

परंतु रास्ते में जाम नदी के तेज प्रवाह को पार करते समय साबरगांव के लोगों ने पत्थरों की वर्षा कर युगल प्रेमी को रोकने की कोशिश की। 

इसी बीच पांढुर्णा गांव के लोगों ने युगल प्रेमी की सुरक्षा के लिए साबरगांव के लोगों पर पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। 


निरंतर पत्थरबाजी के फलस्वरुप जाम नदी के बीच में ही नवयुगल प्रेमी की मृत्यु हो जाती है। 

तब दोनों पक्षों द्वारा शर्मिंदगी का अहसास होने पर पत्थरबाजी बंद कर दी जाती है। तथा युगल प्रेमी के शरीर को चंडी देवी के मंदिर में लाकर पूजा अर्चना उपरांत अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।

इन युगल प्रेमी के बलिदान की स्मृति को प्रतिवर्ष पोला त्यौहार के दूसरे दिन मां चंडी की पूजा-अर्चना उपरांत गोटमार मेला मनाया जाता है। भादो मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन पोला त्यौहार (बैलों का त्यौहार) मनाया जाता है। 

कन्या पक्ष साबरगांव के लोग इस दिन एक पलाश वृक्ष को काटकर लाते हैं। पलाश वृक्ष में लाल कपड़ा की झंडी, तोरण, नारियल और हार चढ़ाकर पूजन कर उसे रात्रि के समय जाम नदी के मध्य में गाड़ देते हैं। 

दूसरे दिन प्रातः मां चंडी के मंदिर में पूजा अर्चना उपरांत वृक्ष व झंडे की पूजा करते हैं। और फिर शुरू हो जाता है पांढुर्णा व सावरगांव के लोगों के मध्य पत्थर मारने का खेल। 

पांढुर्णा पक्ष के लोग वृक्ष का झंडा तोड़कर लाना चाहते हैं परंतु सावरगांव पक्ष के लोग पत्थर मारकर उन्हें ऐसा नहीं करने देते हैं। 

पहले गोफन से भी पत्थर चलाए जाते थे। परंतु अब प्रतिबंधित कर दिया गया है। पत्थरों से घायल लोग आस्था के साथ चंडी मंदिर जाकर जख्मों पर राख लगाते हैं। कभी-कभी इस पथराव में मृत्यु भी हो जाती है। 

जाम नदी के दोनों ओर उपस्थित दोनों पक्षों के ढेर सारे लोगों द्वारा एक दूसरे पक्ष पर पत्थर मारने का यह क्रम दोपहर बाद अपने चरमोत्कर्ष पर होता है। 

शाम को पांढुर्णा पक्ष के लोग चंडी माता के जयकारे लगाते हुए साबरगांव वालों को पीछे ढकेलने का जोरदार प्रयास करते हैं। जैसे ही वे झंडे के पास पहुंचते हैं। 

कुल्हाड़ी से झंडा काट देते हैं। झंडा टूटने पर दोनों और से पत्थरबाजी बंद हो जाती है। और दोनों पक्ष मिलकर गाजे-बाजे के साथ चंडी माता मंदिर पहुंचकर पूजा करते हैं। 
यदि कभी झंडा नहीं टूटा तो प्रशासन दोनों पक्षों में समझौता करवा कर पत्थरबाजी बंद करवा देते हैं। गोटमार मेला काफी रोमांचकारी किंतु खतरनाक भी है।

गोटमार मेला शांतिपूर्ण संपन्न होने के लिये प्रशासन द्वारा सभी तरह की सुरक्षात्मक एवं आवश्यक व्यवस्थायें भी की जाती है। इस दिन शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाता है। 

गोफन से पत्थर फेंकना प्रतिबंधित कर दिया जाता है। तथा पूरे गोटमार मेला की वीडियोग्राफी भी प्रशासन द्वारा करवाई जाती है। 

पूर्व में प्रशासन द्वारा पत्थर प्रतिबंध लगाकर, गांव वालों को पत्थर की जगह रबर की गेंदें मारने हेतु उपलब्ध कराई गई थी। परंतु आस्थागत होने से पत्थर का ही उपयोग लोगों द्वारा किया गया।

गोटमार मेला में दोनों ओर दो अस्थाई पुलिस कंट्रोल रूम व माईक की व्यवस्था की जाती है। दो एंबुलेंस, दो चिकित्सा दल की व्यवस्था के साथ-साथ हड्डी, आंख, कान, गला आदि के विशेषज्ञ चिकित्सकों की भी ड्यूटी लगाई जाती है। नगरपालिका प्रशासन  द्वारा साफ पानी, बिजली, सफाई व्यवस्था आदि का इंतजाम कराई जाती है। 

पुलिस वन विभाग  द्वारा बैरिकेड लगाये जाते हैं। एवं प्रशासन द्वारा सुरक्षा की संपूर्ण व्यवस्था भी की जाती है। गोटमार मेला सुचारू रूप से प्रतिवर्ष इसी प्रकार आयोजित किया जाता है।

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