जीवाश्म पुरातत्व और छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश, भारत (Fossils Archeology And Chhindwara, Madhyapradesh, India) शोध का विषय होने का प्रमाण रखता है कि पुरातत्व के विषय में हमारे क्षेत्र की विशिष्ट जानकारी होनी चाहिये।
ऐसा माना जाता है कि लगभग 50 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर एक सुपर महाद्वीप था। जिसे भू वैज्ञानिकों द्वारा पैंजिया नाम दिया गया। कालांतर में पैंजिया दो विशाल महाद्वीपों में विभक्त हो गया।
दक्षिणी भाग के महाद्वीप को गोंडवाना लैंड तथा उत्तरी भाग के महाद्वीप को लारेशिया लैंड नाम दिया गया। गोंडवाना लैंड पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में था। करोड़ों वर्ष पूर्व गोंडवाना लैंड के टूटने से दक्षिणी अमेरिका, अंटार्कटिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीकी महाद्वीप का जन्म हुआ।
इस प्रक्रिया के समय गोंडवाना लैंड से मेडागास्कर नामक एक टुकड़ा अलग हो गया तथा कुछ हिस्से जैसे अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप, लारेशिया लैंड से जुड़ गए। लगभग 13 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के स्थान पर एक लंबा और सकरा जलमग्न क्षेत्र था, जिसे टीथिस सागर कहा गया है।
लगभग 13 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उप महाद्वीप, गोंडवाना लैंड से टूटकर, यूरेशिया प्लेट की ओर बढ़ने लगा। लगभग 6.50 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप की प्लेट और यूरेशिया प्लेट के टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। और टीथिस सागर विलुप्त हो गया।
हिमालय के निर्माण के बाद कालांतर में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र नदियां अस्तित्व में आई। तो इसका मतलब यह हुआ कि नर्मदा नदी का अस्तित्व अति प्राचीन रहा होगा क्योंकि यह नदी पहले से ही गोंडवाना लैंड में बहती रही थी और आज भी प्रवाहमान है।
गोंडवाना लैंड का नाम भारत के गोंडवाना प्रदेश के नाम पर रखा गया। क्योंकि इन्हीं क्षेत्रों में शुरुआती जीवन के चिन्ह भूवैज्ञानिकों को मिले।
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खगोलीय घटनाओं के अनुसार लाखों करोड़ों वर्षों के अंतराल में पृथ्वी पर कभी उल्कापिंड गिरने के कारण, तो कभी पृथ्वी के भूगर्भीय परिवर्तन जैसे भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट आदि के कारण, पृथ्वी पर डायनासोर युग का अंत हुआ और इन स्थितियों में जीव-जंतुओं, वनस्पतियों आदि जमीन में दब गए समा गए।
इनमें से कुछ जीव-जंतुओं, वनस्पतियों आदि ने जमीन के भीतर के विशिष्ट दाब और ताप के प्रभाव के कारण, ज्यों के त्यों दबने के कारण, इन जीव-जंतुओं, वनस्पतियों में परिवर्तन नहीं हुआ और वे पत्थर के ठोस रूपों में परिवर्तित हो गए। इन्हें ही जीवाश्म का नाम दिया गया।
ठोस रूप में परिवर्तित जीव-जंतुओं, वनस्पतियों के जीवाश्म के समय का निर्धारण कार्बन डेटिंग पद्धति द्वारा किए जाने पर पाया गया कि यह लाखों करोड़ों वर्ष के प्राचीन हैं।
छिंदवाड़ा जिले के विभिन्न विकास खंडों के कुछ एक ग्रामों में शंख जीवाश्म तथा काष्ठ जीवाश्म पाए जाते हैं। यह जीवाश्म तीन करोड़ से साढ़े छह करोड़ वर्ष प्राचीन हो सकते हैं। डॉ.बीरबल साहनी पुरातात्विक संस्थान लखनऊ से इन जीवाश्मों की पहचान किया जाना शेष है।
छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड छिंदवाड़ा, चौरई, अमरवाड़ा, हर्रई, तामिया, जुन्नारदेव, परासिया, मोहखेड़ एवं बिछुआ के कुछ एक ग्रामों में जीवाश्म अवशेष परिलक्षित हुए हैं। यहां स्वर्गीय बादल भोई राज्य आदिवासी संग्रहालय, छिंदवाड़ा में लिंगा के समीप बोदला पहाड़ के शंख जीवाश्म तथा पलटवाड़ा के समीप, पेंच नदी के किनारे मिले काष्ठ जीवाश्म के अवशेष प्रदर्शित किए गए हैं।
मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल द्वारा प्रकाशित "मध्यप्रदेश के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ" के पृष्ठ 135 के क्रमांक 295 पर मोहगांव कला में वृक्ष जीवाश्म मिलने का भी उल्लेख किया गया है। आज से लगभग 3 माह पूर्व श्री गजेंद्र सिंह नागेश, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत छिंदवाड़ा को भी भ्रमण के दौरान ग्राम पंचायत पालामऊ के पास पहाड़ी पर शंख जीवाश्म स्थल से प्राप्त हुआ।
इसके अतिरिक्त लेखक द्वारा भी छिंदवाड़ा जिले के कुछ एक ग्रामों में शंख और काष्ठ जीवाश्म के स्थल खोजे गए हैं। इस दिशा में यदि खोज की जाए तो छिंदवाड़ा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में सरीसृप या डायनासोर के जीवाश्म अंडे भी मिल सकते हैं।
अतः पाठकों से अनुरोध है कि यदि उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में, जंगल, पहाड़ों में , यदि पत्थर में परिवर्तित जीवाश्म यदि दिखाई दें, तो कृपया नीचे कमेंट कर हमें अवश्य सूचित करें व जानकारी उपलब्ध करायेंं।
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