जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से लगभग 28 किलोमीटर दूर लिंगा, उभेगांव होते हुए ग्राम नीलकंठी कला के प्राचीन नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। जिसे गोदड़देव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के 1 किलोमीटर परिधि में तीन अन्य शिव मंदिरों के भग्नावशेष भी है। जिन्हें सास बहू शिव मंदिर दैय्यत बाबा नृसिंह शिव मंदिर तथा शिवलिंगी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इन सभी मंदिरों के परिक्षेत्र में गोदड़देव मेला प्रतिवर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी से 15 दिवस के लिए लगता है। यह मेला विगत लगभग 30 वर्षों से लग रहा है। मेले में छिंदवाड़ा, सिवनी, चौरई, उमरानाला आदि आसपास के व्यापारी अपनी दुकानें लगाते हैं।
गोदड़देव मेला में रेडीमेड कपड़े, साड़ी, किराना, मसाला, बर्तन, सोने चांदी आभूषण, मिठाई, खिलौने आदि की दुकानों के अलावा झूले व खेल तमाशा दिखाने वाले भी आते हैं। मेले में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। गोदड़देव मेला में लगभग दो लाख तक श्रद्धालु भगवान नीलकंठेश्वर महादेव (गोदड़देव) मंदिर में दर्शन व पूजा - अर्चन करते हैं।
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गोदड़देव मेला का मुख्य आकर्षण केंद्र है नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर जिसे गोदड़देव मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। मंदिर द्वार पर उत्कीर्ण मूर्तियां की स्थापत्य कला दर्शनीय है। पर्यटकों हेतु सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है।
मध्यप्रदेश शासन के पुरातत्व अभिलेखाकार एवं संग्रहालय के सूचना फलक अनुसार विदर्भ के देवगिरी (वर्तमान दैयता बाद) के यादव राजा महादेव (मृत्यु सन् 1241) एवं रामचंद्र के मंत्री हिमाद्रि ने विदर्भ राज्य में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। जिन्हें हिमाड़ पंथी के मंदिर कहते हैं। भूमित्र शैली का यह मंदिर कलचुरी स्थापत्य से मिलता है।
परंतु मंदिर परिक्षेत्र स्थित एक शिलालेख जो अब अस्पष्ट है। में मान्यखेह (मालखेड़) के राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख है जिसका शासनकाल सन् 939 ई. से सन् 967 ई. तक था।
इस मंदिर के समीप लगभग 300 मीटर की दूरी पर रोड किनारे तिफना नदी के पास सास-बहू शिव मंदिर के खंडहर बिखरे पड़े हैं। यहां पर मिले एक और शिलालेख जो अब अस्पष्ट है। में भी राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख किया गया है। अतः निश्चित ही इन मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय के शासनकाल सन् 939 से सन् 967 के बीच का होगा। यह राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रतापी शासक था।
श्री आर. व्ही. रसेल द्वारा संपादित जिला छिंदवाड़ा के गजेटियर सन् 1907 ई. के अनुसार नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर (गोदड़देव मंदिर) 264 फिट लंबे एवं 132 चौड़ी पत्थर की चार दीवारी से छिरा था। परंतु अब थोड़े से टूटे-फूटे शिलाखंड ही मंदिर के पास बिखरे पड़े हैं।
मंदिर के टूटे मंडप को ग्रामीणों द्वारा जन सहयोग से पुनः निर्मित किया गया है। मंदिर भूमित्र शैली का है। शिवलिंग दर्शन हेतु सीढ़ियां द्वारा नीचे उतरना पड़ता है। यहां का प्रवेश द्वार अत्यंत नक्काशीदार एवं कलाकृतियों से युक्त है। द्वार पर सप्तमातृकायें उत्कीर्ण है। द्वार के समक्ष के दो स्तंभ भी नक्काशी पूर्ण है।
(☝️नीलकंठेश्वर मंदिर, नीलकंठी कला)
पर्यटन की दृष्टि से नीलकंठेश्वर महादेव (गोदड़ देव) मंदिर तो दर्शनीय है ही, इसके अतिरिक्त तीन अन्य मंदिर के खंडहर देखे जा सकते हैं। जिनमें दूसरा मंदिर 300 मीटर दूर सड़क के किनारे तिफना नदी के पास सास बहू शिव मंदिर। यहां बिखरी हुई शीलाओं से मंदिर की भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है।
तीसरा मंदिर 1 किलोमीटर दूर ग्राम नीलकंठी के पास, गौशाला के पास पहाड़ी पर है जिसे दैय्यत बाबा नृसिंह शिव मंदिर कहते हैं। यहां भी शीलाखंडों एवं भग्नावस्था पड़ी हुई विभिन्न देवी-देवताओं की अलंकृत मूर्तियां पड़ी हुई है।
चौथा मंदिर शिवलिंगी मंदिर है। जो गौशाला से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर, पहाड़ी के नीचले हिस्से में मौजूद था। अब सिर्फ चिन्ह ही बाकी है, शिवलिंग है। कुछ ही शिलाखंड पड़े हैं। ग्रामीणों द्वारा मंदिर निर्माण जारी है।
इन चारों मंदिरों के परिक्षेत्र घेरे में गोदड़देव मेला भरता है। संपूर्ण प्रबंध गोदड़देव मेला समिति, पुलिस व राजस्व विभाग एवं ग्राम पंचायत द्वारा व्यवस्थित रूप से आयोजन किया जाता है। गोदड़देव मेला घूमने के साथ-साथ 10वीं शताब्दी का यह नीलकंठेश्वर मंदिर पर्यटन की दृष्टि से दर्शनीय स्थान है।
स्थानीय किवदंती के अनुसार माना जाता है कि यहां द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिरों का समूह था एवं इसके लिए 700 एकड़ भूमि आवंटित थी। हमनें 4 मंदिरों नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, सास बहू शिव मंदिर, दैय्यत बाबा नृसिंह शिव मंदिर तथा शिवलिंगी मंदिर का वर्णन किया है।
एक अन्य मंदिर के स्तंभ अवशेष लगभग 1 किलोमीटर दूर बहती कुलबहरा नदी के किनारे प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार पांच मंदिरों के खंडहर अवशेष की जानकारी तो मिलती है लेकिन 7 मंदिरों के खंडहरों की पुष्टि की जाना शेष है।
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर तथा सास बहू शिव मंदिर में 10 वीं शताब्दी के राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीया के शिलालेख मिले हैं अतः हम यह मान सकते हैं कि इन दोनों मंदिरों का निर्माण राजा कृष्ण तृतीया ने करवाया होगा। शेष अन्य मंदिरों का निर्माण भी समय-समय पर विभिन्न काल खंडों में अन्य राजाओं द्वारा करवाया गया होगा।
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