पूर्व लेख हरियागढ़ किला - गोंड राज्य का प्राचीन किला, जिला- छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश (भाग-1) | Fort of Hariyagarh, Chhindwara, Madhya Pradesh, India में हमने देखा है कि हरियागढ़ किला करीब 1000 वर्ष से भी प्राचीन समय का इतिहास अपने में समेटे हुए हैं।
ऐसे ही साक्ष्यों का उल्लेख इस लेख हरियागढ़ किला - गोंड राज्य का प्राचीन किला, जिला- छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश (भाग-2) | Hariyagarh Fort, Chhindwara, Madhya Pradesh, India किया जा रहा है। जिससे यह तथ्य उभरता है कि हरियागढ़ किला लगभग 1000 वर्ष व उससे भी अधिक प्राचीन है।
हरियागढ़ किले के समीप हरियागढ़ ग्राम (वर्तमान हिरदागढ़ गांव) स्थित है। यहां हिरदागढ़ गांव में चार बावड़ियांं खोजी गई है। यह बावड़ियांं मिट्टी में पूर्णतः दबी हुई थी। इन बावड़ियों पर स्थानीय किसानों द्वारा खेती की जा रही है। स्थानीय बुजुर्गों की जनश्रुति अनुसार बावड़ी के स्थान चिन्हित किए जाने के बाद, तीन बावड़ियों में प्रशासन द्वारा उत्खनन किया गया।
इन तीन बावड़ियों की खुदाई करने पर नीचे उतरने की सीढ़ीनुमा संरचनाएं मिलने लगी। यह संरचनाएं अद्भुत दृश्यों से परिपूर्ण थी। स्थानीय पत्थरों के टुकड़ों को चूने की गाद से जोड़कर यह सीढ़ीनुमा संरचना बनाई गई नजर आती है। इन सीढ़ियों में प्लास्टर का जोड़ नहीं दिखता है।
इन बावड़ियों की संरचना को देखकर "संरक्षण हेरिटेज कंसलटेंट, नई दिल्ली" के निदेशक श्री मुनीष पंडित का मत है कि यह संरचना लगभग 1000 वर्ष प्राचीन बावड़ी निरूपित करता है।
तीनों बावड़ी ज्यामिति संरचना के अनुसार बनी हुई हैंं। यह बावड़िया पूर्व-पश्चिम दिशा, उत्तर-दक्षिण दिशा अनुसार बनाई गई हैंं। ऐसा मानना है कि इन बावड़ियों का सार्वजनिक उपयोग होता रहा होगा, क्योंकि यह सभी बावड़ियांं हरियागढ़ ग्राम के समीप ही स्थित है।
हरियागढ़ के प्राचीन तालाब -
हरियागढ़ (वर्तमान हिरदागढ़) के सर्वाधिक निकट प्राचीन काल के दो बड़े तालाब भी स्थित हैं। एक तालाब तो किले के नीचे ही हरियागढ़ ग्राम में स्थित है।
(☝️हरियागढ़ का तालाब)
हरियागढ़ का तालाब ग्राम के मुख्य मार्ग के किनारे स्थित है। तालाब के उत्तर दिशा में तालाब में उतरने हेतु एक प्राचीन सीढ़ीनुमा संरचना बनी है, जो अनगढ़ पत्थरों को चूना और गाद से जोड़ कर बनाई गई है (गाद - बेल गूदा, उड़द दाल, चूना, आदि सामग्री)। यह संरचना भी निश्चित ही 800 से 1000 वर्ष प्राचीन नजर आती है।
दूसरा तालाब हरियागढ़ ग्राम से लगभग 1.50 किलोमीटर दूर हरियागढ़ ग्राम के ढाना (मोहल्ला) मेंहदावीर में स्थित है। यह तालाब राज्य की प्रजा के उपयोग के लिए बनाए गए होंगे। दोनों प्राचीन तालाब वर्तमान में अभी भी अच्छी अवस्था में है तथा आज भी ग्रामीणों द्वारा उपयोग किये जा रहे हैं।
(☝️मेंहदावीर का तालाब, हरियागढ़ किले के ऊपर से दृश्य)
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रानी की बैठक एवं राजा की झिरी तथा प्राचीन कुएं -
1000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन हरियागढ़ ने कई राजाओं और कई रानियों का कार्यकाल देखा है। ऐसा ही एक प्राचीन टीलानुमा स्थान स्थानीय बुजुर्गों की स्मृतियों में रानी की बैठक किवदंती के रूप में आज भी जीवंत है।
रानी की बैठक व राजा की झिरी, हरियागढ़ किले के नीचे, वर्तमान हिरदागढ़ ग्राम और कन्हान नदी के बीच स्थित है। यहां पर एक चौकोर बगीचा रहा होगा और टीलानुमा स्थान पर बैठकर, राजा रानी यहां के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने घूमने आते रहे होंंगे। चुंकि इस स्थान से हरियागढ़ का किला (HariyaGarh Fort) स्पष्ट दिखता है तथा लगभग 200 मीटर की दूरी पर कन्हान नदी बहती नजर आती है।
कन्हान नदी के दूसरी ओर पहाड़ी का प्राकृतिक दृश्य मन को आनंद विभोर कर देता है। किंवदंतियों में जीवित जनश्रुति अनुसार यह स्थान रानी की बैठक के नाम से प्रचलित है। समीप ही कन्हान नदी के किनारे पानी का एक प्राकृतिक भूगर्भीय जल स्त्रोत है, जिसका जल सीधे नदी में प्रवाहित होता है।
स्थानीय लोगों की स्मृति में यह स्थान राजा की झिरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहींं समीप में, राजा की झिरी तथा रानी की बैठक के मध्य, श्री फूलचंद सरयाम के खेत में एक 3 फीट × 4 फीट का छोटा और आयताकार प्राचीन कुंंआ स्थित है।
इसकी बनावट अनुसार यह भी 600 वर्ष से अधिक प्राचीन प्रतीत होता है। कुएंं के प्लास्टर आज भी वर्तमान में मौजूद है, जो चूना, गाद से बनाए हुए हैं। ऐसा ही एक और कुआं हरियागढ़ में मिला है।
(☝️रानी की बैठक, खुदाई के पूर्व, हरियागढ़)
रानी की बैठक के चौकोर टीलेनुमा स्थान का स्थानीय ग्राम पंचायत द्वारा उत्खनन करवाया गया। तो यहां पर चौकोर चौड़े और लंबे पत्थरों से बना एक बरामदा मिला। बरामदा के बीच में बेंच जैसी बैठक पत्थर की मिली। अर्थात यहां प्राचीन काल में बगीचा और रानी बैठक अवश्य ही रही है, जो जनश्रुतियों में आज भी जीवित है।
चंडीमंदिर और दो गुफाएं -
हरियागढ़ किले (HariyaGarh Fort) की पहाड़ी पर शासकों की देवी का पूजन स्थल चंडी मंदिर स्थित है। स्थानीय जनश्रुति अनुसार इसी स्थान पर रनसूर व घनसूर गौली शासकों के आदेश पर जाटवा शाह ने दशहरा के अवसर पर लकड़ी की तलवार से भैंसे की बलि दी थी। यह घटना सोलहवींं शताब्दी में अर्थात आज से लगभग 450 वर्ष पूर्व घटित हुई थी।
जाटवा शाह ने हरियागढ़ में ही रनसूर और घनसूर गौली सरदारों को अपदस्थ कर हरियागढ़ की राज सत्ता हासिल की थी तथा कुछ समय पश्चात हरियागढ़ (HariyaGarh) से राजधानी देवगढ़ (DevGarh) स्थानांतरित कर दी। चंडी मंदिर के समीप दो गुफाएं हैं।
किवदंती अनुसार एक गुफा का मार्ग देवगढ़ किले (DevGarh Fort) को जाता है, दूसरी गुफा भी किले से बाहर जाने का मार्ग है। राज्य के स्थानीय निवासियों द्वारा लकड़ी की तलवार से भैंसे की बलि देने की प्रथा आज भी हरियागढ़ (वर्तमान हिरदागढ़) ग्राम के समीप स्थित ग्राम पंचायत हनोतिया के ग्राम उमरखोड़ कला में प्रचलित है। यहां जाटवा शाह की तरह लकड़ी की तलवार से प्रतिवर्ष दशहरा में भैंसे की बलि दी जाती है।
तवा नदी और कन्हान नदी का उद्गम तथा कछुआ कछुए की कहानी -
तवा नदी तथा कन्हान नदी, मध्यप्रदेश की दो प्रमुख नदियां हैं। तवा नदी का उद्गम, हरियागढ़ किले के निचले हिस्से एवं ग्राम हिरदागढ़ के समीप से हुआ है।
(☝️हरियागढ़ के नीचे तवा नदी उद्गम स्थान, हरियागढ़ गांव के पास)
नदी के उद्गम मुहाने के पास दो कछुआ आकार के पत्थर हैं - जिन्हें स्थानीय बुजुर्ग कछुआ कछुवी की जोड़ी कहते हैं। हरियागढ़ गांव की बसाहट के पीछे कन्हान नदी बहती है। स्थानीय बुजुर्गों की जनश्रुति अनुसार यह कछुआ व कछुवी, तवा नदी को कुछ दूर पहले से लेकर कन्हान नदी से मिलाने ले जा रहे थे। परंतु दिन निकल जाने के कारण वह पत्थर में बदल गए और उनसे लगभग 5 फीट की दूरी पर तवा नदी का उद्गम स्थित हो गया।
(👆कछुआ कछुवी की जोड़ी, हरियागढ़)
तवा नदी, मध्यप्रदेश की एक प्रमुख नदी है। इसकी कुल लंबाई 172 किलोमीटर है। तवा नदी पर मध्यप्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा सड़क मार्ग का पुल होशंगाबाद जिले में बना है। जिसकी लंबाई 1322 मीटर है। तवा नदी उत्तर दिशा में बहती हुई नर्मदा नदी में मिल जाती है।
हरियागढ़ (HariyaGarh) से लगभग 10 किलोमीटर की सीधी दूरी पर गोप ग्राम के पास से कन्हान नदी निकली है। यह भी मध्यप्रदेश की एक प्रमुख नदी है। यह छिंदवाड़ा जिले में 113 किलोमीटर बही है। यह नदी दक्षिण की ओर बह कर, फिर पूर्व की ओर बहती हुई, बैनगंगा नदी में मिल जाती है।
कन्हान नदी पर मोरडोंगरी के पास जिलहरी घाट पर रमणीय प्राकृतिक दृश्य होने से पर्यटक यहां पिकनिक मनाने आते हैं।
देवगढ़ (DevGarh Fort) के पास कन्हान नदी में लिलाही नामक मिनी लिलाही धुआंधार जलप्रपात बनाती है। यह जलप्रपात दर्शनीय है। इस प्रकार मध्य प्रदेश की 2 बड़ी नदियां, तवा नदी एवं कन्हान नदी मात्र 10 किलोमीटर की सीधी दूरी से निकल कर एक दूसरे के विपरीत दिशा में बहती हैंं।
मेंहदावीर की मूर्तियां -
ग्राम हरियागढ़ के समीप लगभग 1.50 किलोमीटर की दूरी पर हरियागढ़ का एक ढाना स्थित है, जो मेंंहदावीर के नाम से पुकारा जाता है। मेंहदावीर के निवासी श्री प्यारेलाल गौली के खेत में कुआं खोदते समय कुछ मूर्तियां निकली थी, यह घटना मार्च 1982 की है।
इन मूर्तियों को खेत में एक बड़े पेड़ के नीचे चबूतरा बनाकर रख दिया गया था। इनमें भगवान शंकर, हनुमान जी की मूर्तियां तो तत्समय ही कुछ लोग चोरी करके ले गए। सन 1993 तक मूर्तियों के खंडित अवशेष प्यारेलाल गौली के खेत पर चबूतरे पर रखे थे, जिसकी फोटो लेखक द्वारा ली गई थी। परंतु अब वे मूर्तियां दृष्टिगोचर नहीं होती हैं।
(👆हिरदागढ़ {हरियागढ़} के ढाना मेंहदावीर में श्री प्यारे यदुवंशी को सन् 1982, खेत में कुंआ खुदवाने पर 10 फीट गहराई में प्राप्त देव।)
इन ऐतिहासिक कलाकृतियों एवं मूर्ति अवशेषों पर 10वीं शताब्दी के मालवा के परमार राजाओं या 12 वीं शताब्दी के देवगिरि (वर्तमान दौलताबाद, महाराष्ट्र) के यादव शासकों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता था। ज्ञात हो कि इस क्षेत्र पर परमार राजा मुंज (974 ई. - 998 ई.) एवं राजा भोज (1010 ई. - 1055 ई.) का शासन लगभग 100 वर्ष तक रहा तथा देवगिरि (दौलताबाद) के यादव शासकों व उनके उत्तराधिकारियों का सन् 1175 से 1318 ईस्वी के बीच शासन रहा है।
त्रिपुरी के कलचुरी राजाओं का भी कुछ समय शासन रहा। अर्थात् परमार एवं यादव व कलचुरी राजाओं के अधीनस्थ कोई सामंत या सरदार हरियागढ़ पर शासन करता रहा होगा। उनके काल में बनी मूर्ति व मंदिर अवशेषों से हरियागढ़ की प्राचीनता 1000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन सिद्ध होती है।
सन् 974 ई. के पूर्व इस क्षेत्र पर राष्ट्रकूट राजाओं का राज्य रहा। राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय (सन् 939 - 967 ई.) ने छिंदवाड़ा जिले के नीलकंठीकला ग्राम में उत्कृष्ट नक्काशी युक्त विशालकाय नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। इस राजा के दो शिलालेख वहां पाये गये हैं। तत्समय राजा मुंज के पूर्वज राष्ट्रकूटों के आधीन मालवा में सामंत थे। तत्समय राष्ट्रकूटों का अधिकार मालवा तक था। तो निश्चित ही छिंदवाड़ा का हरियागढ़ क्षेत्र भी उनके आधीन रहा होगा।
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