दलसागर तालाब, सिवनी, मध्यप्रदेश | Dal Sagar Talab, Seoni, Madhya Pradesh
ऐसा माना जाता है कि सिवनी जिले का नाम सेओना वृक्षों के नाम पर पड़ा था। यह वृक्ष सिवनी जिले में बहुतायत मेंं पाये जाते रहे हैं।
एक मत यह भी कहता है कि आदि शंकराचार्य जी अपने भारत भ्रमण के दौरान एक दिन के लिए यहां सिवनी में रुके थे एवं भगवान शिव की पूजन अर्चना किये थे। उक्त शिव मंदिर के कारण कालांतर में यह स्थान मठ मंदिर कहा जाने लगा। उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग के कारण यह क्षेत्र सिवनी के नाम से जाना जाने लगा।
जिला मंडला के गोंड राजाओं के 52 गढों में से एक महत्वपूर्ण सिवनी भी रहा है। यहां नगर मुख्यालय में 3 गढ़ चावड़ींं, छपारा और आदेगांव प्रमुख थे।
गोंड राजाओं के पतन के बाद सन् 1743 ईस्वी में सिवनी, नागपुर के भोंंसले राजाओं के साम्राज्य के अधीन आ गया। लेकिन सत्ता का केंद्र वर्तमान सिवनी का छपारा ही था। जो सन् 1774 में छपारा से बदलकर मुख्यालय सिवनी हो गया था।
इसी समयकाल में दीवानगढी का निर्माण हुआ और सन् 1853 में मराठों के पतन एवं निःसंतान रघ्घुजी तृतीय की मृत्यु के कारण यह सिवनी का क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव में आ गया।
मुख्यालय सिवनी में दीवान साहब का सिवनी ग्राम, मंगलीपेठ एवं भैरोगंज ग्राम मिलकर सिवनी नगर बना। इसके बाद सन् 1867 में सिवनी नगर पालिका का गठन हुआ।
सन् 1909 तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने सिवनी जिले का विस्तार करते हुए यहां सुविधाएं उपलब्ध कराने रेलवे लाइन विस्तार करने का प्रयास किया।
सन् 1904 में बंगाल-नागपुर नैरोगेज रेलवे का आगमन हुआ। सन् 1938 में बिजली घर के निर्माण ने नगर में एक नए युग का नया अध्याय शुरू किया। सन् 1956 में सिवनी पुनः जिला बनाया गया।
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दलसागर तालाब, सिवनी के शासकीय बस स्टैंड से सिर्फ 50 मीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित है। यह सिवनी का दलसागर तालाब लगभग 50 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है।
तालाब के किनारे अति सुंदर घाट बनाए गए हैं, स्वच्छ परिसर एवं बीचों-बीच टापू पारिवारिक लोगों के भ्रमण का केंद्र है। यहां हरे भरे खूबसूरत पेड़ पौधे को रोपा गया हैं।
दलसागर तालाब में नौका विहार की सुविधा शुरू की गई है जिसके कारण यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है। यह अब जिले की एक ऐतिहासिक धरोहर तथा सिवनी नगर की पहचान बन चुका है।
दलसागर तालाब के संबंध में स्थानीय लोगों का एक पक्ष यह कहता है कि इसका निर्माण गढ़ मंडला के गोण्ड शासक और वीरांगना रानी दुर्गावती के पति राजा दलपत शाह (सन् 1542 से 1548) के द्वारा करवाया गया था।
वहीं स्थानीय लोगों का दूसरा पक्ष कहता है कि दलसागर तालाब स्थानीय सरदार दलसा गोली के द्वारा बनवाया गया था। देवगिरि (वर्तमान जिला दौलताबाद, महाराष्ट्र) के यादव शासकों का शासन, इस क्षेत्र पर 12वीं एवं 13वीं शताब्दी में रहा है। तब उनका कोई सरदार यहां नियुक्त रहा है जिसने यह दलसागर तालाब का कार्य पूर्ण किया था।
सिवनी जिले के ग्राम आष्टा में देवगिरि के यादव शासकों के महामंत्री द्वारा बनवाये गये चार मंदिरों के अवशेष अभी भी शत् प्रतिशत मौजूद हैं। अतः यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दलसागर तालाब 13वीं अथवा 16 वींं शताब्दी में बनाया गया है।
इसके अलावा सन् 1864 के आसपास यहां के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर कर्नल थॉमसन ने दलसागर तालाब के चारों ओर पक्के घाट बनवाये थे।
दलसागर तालाब में से शाम के समय पश्चिम दिशा की ओर सूर्यास्त का मनोरम दृश्य देखने के लिए तालाब के बीचों-बीच में एक टापू बनाया गया था। सन् 1904-05 के आसपास इस जलाशय को शुद्ध जल से भरने के लिए बाबरिया तालाब से एक पाइप लाइन जोड़ी गई थी।
सन् 1983 में जिला सिवनी के कलेक्टर श्री एम. पी. राजन ने प्रशासनिक व जनसहयोग से दलसागर तालाब का सौंदर्यीकरण करवाकर तालाब को प्रदूषण मुक्त करवाया था। इनके द्वारा चारों ओर दीवार उठाकर लोहे की जाली लगवाई गई और बावरिया तालाब से पाइप लाइन के माध्यम से स्वच्छ जल भरवाया गया था।
सन् 2010-11 में दलसागर तालाब का पुनः सौंदर्यीकरण का कार्य करवाया गया है। इस दौरान तालाब का पूरा पानी निकलवाया गया फिर इसका गहरीकरण भी किया गया था।
वर्तमान समय में दलसागर तालाब, शहर का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया गया है। यहां बोटिंग की सुविधा के साथ साथ गार्डन (बगीचे) में बैठ कर तालाब के सौंदर्ययुक्त प्राकृतिक माहौल को निहारने के साथ साथ, चाय नाश्ता कोलड्रिंक आदि स्टाल की सुविधा भी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है।
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