Latest

10/recent/ticker-posts

सिवनी जिले का इतिहास, मध्यप्रदेश, भारत(History of District Seoni, Madhya Pradesh, India)

मध्यप्रदेश का एक विशेष जिला है सिवनी जिला।

सिवनी जिला, जबलपुर और नागपुर जैसे बड़े शहरों के बीच स्थित एक प्रभावशाली जिला है।

कहानी बहुत ही दिलचस्प है। सिवनी एक छोटे-से ग्राम से शुरू होकर भैरोगंज ग्राम, मंगलीपेठ और सिवनी ग्राम मिलकर सिवनी नगर बना और बाद में सन् 1867 में सिवनी नगर पालिका बना।

अभी सिवनी जिले का कुल क्षेत्रफल 8758 वर्ग किलोमीटर है। सिवनी जिले के उत्तर दिशा में जबलपुर, नरसिंहपुर और मंडला, पूर्व दिशा में बालाघाट, दक्षिण दिशा में भंडारा और नागपुर और पश्चिम दिशा में छिंदवाड़ा जिला स्थित है।

सिवनी जिले का इतिहास बहुत पुराना नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता हैै कि पहलेेे सिवनी बहुुत छोटा गांव था। सिवनी जिले का नाम सेवन के वृक्षों के कारण सिवनी पड़ा। ये वृक्ष आज भी बहुतायत में देखने मिलते हैं। सिवनी जिला घने जंगलों से हमेशा घिरा रहा है।

एक धारणा यह भी है कि सिवनी जिले में शैैव मत के अनुयाई बहुत रहें हैं और उनके इष्टदेव भगवान शिव थे। भगवान शिव की पूजा अर्चन स्थली होने से, शिवलिंग की पूजा और शिव की  भूमि होने से शिवनी से सिवनी नाम हो गया।

इतिहास के तथ्यों के अनुसार मंडला के गोंड राजाओं के 52 गढ़ों में एक महत्वपूर्ण स्थल सिवनी भी रहा है। पूर्व में सिवनी की सत्ता का केंद्र छपारा रहा था। जो सन् 1774 में छपारा से बदलकर सिवनी मुख्यालय हो गया था।

सिवनी जिले की मुख्य नदी वैनगंगा नदी है। वैनगंगा नदी सिवनी के बीचों-बीच बहती है।  सिवनी जिले की मुख्य फसल गेहूं है। इस क्षेत्र में सागौन मुख्य रूप से पाया जाता है। सिवनी जिले में अधिकतर बुंदेली हिंदी बोली जाती है।

सिवनी जिला मुख्यतः सतपुड़ा पहाड़ियों का भाग रहा है। इससे यह पता चलता है कि यहां घने जंगलों की बहुलता रही है। सिवनी जिले में गोंड लोगों की बसाहट अधिक है। कहीं-कहीं गोंड लोग अपने को रावण वंशी भी कहते हैं।

मध्यप्रदेश शासन के गैजेटियर के अनुरूप प्राप्त जानकारी अनुसार पहले सिवनी जिले पर बरार के वाकाटक राजवंश का राज था। तथ्यों के अनुरूप प्रमाण मिलता है कि पिंडराई के हजारी गोंड के पास एक ताम्रपत्र था। जिसमें वाकाटक वंश के गांवों का जिक्र मिलता है। ताम्रपत्र से प्राप्त जानकारी अनुसार उक्त स्थान सिवनी जिले में वाकाटक वंश का पहला राजा प्रवरसेेन प्रथम था। 

प्रवरसेन प्रथम का एक पुत्र गौतमी हुआ। किंतु गौतमी की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई। जब राजा प्रवरसेन प्रथम भी जिंदा थे। गौतमी का पुत्र रूद्रसेन प्रथम हुआ। जिनका राज उत्तर में अजयगढ़ और दक्षिण में कर्नाटक तक फैल गया था। 

रूद्रसेन प्रथम के बाद उनके पुत्र रूद्रसेन द्वितीय ने राज किया। रूद्रसेन द्वितीय के पुत्र प्रवरसेन द्वितीय का राज हुआ। जो हजारी गोंड के पास ताम्रपत्र मिला वह इसी जमाने का माना जाता है।

प्रवरसेन द्वितीय के बाद तीन-चार राजा ओर हुए।इस वंश का अंतिम राजा हर्षशेण का उल्लेख मिलता है। वाकाटकों का अमल 500 ईसवी तक इस सिवनी जिले में रहा होगा। 

इसके बाद कलचुरियों का शासन रहा है। ऐसा उल्लेख ताम्र व शीलाओं के लेखों में पाया गया है। कलचुरियों का राज 12वीं शताब्दी तक चला।

कलचुरियों के बाद फिर चंदेलों का राज प्रारंभ हुआ। लेकिन चंदेल शासक ज्यादा समय तक सिवनी जिले में नहीं राज करें और लूटपाट कर आगे बढ़ गए।


इसके बाद शुरू हुआ गोंड शासकों का राज। जहां गोंडों ने अपनी राजधानी गढ़ा में स्थापित की और लंबे समय तक अपने राज्य का विस्तार करते रहे। गोंड राजा कुछ समय अपनी राजधानी बदलकर मंडला ले गए। 16 वीं शताब्दी से डेढ़ सौ वर्ष बाद दो मुसलमानों ने सिवनी में बगावत कर दी। तब मंडला के राजा ने छिंदवाड़ा जिले के देवगढ़ के राजा बख्तबुलंद से मदद मांगी। 

बख्तबुलंद गोंड ही थे। परंतु दिल्ली दरबार को जाने पर मुसलमान हो गया था। बख्तबुलंद मदद करने राजी हो गया और बागियों को हराकर सजा दी गई। जिससे खुश होकर मंडला के गोंड राजा ने सहायता के बदले सिवनी जिला भेंट स्वरूप बख्तबुलंद को ही दे डाला। 

तब से ही सिवनी देवगढ़ के अधीन आ गया। माना जाता है कि बख्तबुलंद की मृत्यु सन् 1706 में हो गई थी। सन्  1743 ई. से देवगढ़ राज्य की सत्ता मराठाओं के पास रघुजी भोंसलें के हाथों में पहुंच गई थी।

इसके बाद सिवनी जिले में दीवान शाही की शुरूआत हुई और मरहठी दरबार ने मुहम्मद खां को दीवान की पदवी देकर सिवनी सौंप दी गई। पश्चात् मुहम्मद खां की दो-तीन पीढ़ियों ने राज किया। सन् 1778 में मुहम्मद जमान खां दीवान हुआ। इनके जमाने में पिंडारों ने दो बार छपारा को लूटा है। 

माना जाता है कि छपारा में इतना सोना था कि पिंडारियों ने बहुत लूटा और यह लूट की देखा देखी गोंड लोग भी लूटमार पर उतारू हुए और छपारा को उजाड़ डाला। अंततः भोंसलों और अंग्रेजों के बीच सीताबल्डी में लड़ाई हुई और सुलह के बाद सिवनी सन् 1818 अग्रेजों के अधिकार में आ गई।

सिवनी जिले में गोंडो का प्रभाव रहने से यहां के महोत्सव में भी मेघनाथ मेले का प्रतिरूप दिख जाता है। जैसे नागपुर में इस मेले को गल कहते हैं। मेघनाथ जो कि रावण का पुत्र था। उसके नाम से प्रथा आज भी जीवित है।

सिवनी जिले में सालाना भरने वाला बड़ा मेला मुंडारा में भरता है। मुंडारा वैनगंगा नदी का उद्गम स्थल है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा में भरता है और 14 दिन तक लगता है। वैनगंगा नदी में स्नान करने का भी बहुत महत्व है।

एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का बांध "संजय सरोवर बांध" छपारा (भीमगढ़) सिवनी वैनगंगा नदी पर ही बना है।

सिवनी जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-7 (बनारस- कन्याकुमारी) है। जो उत्तर से दक्षिण तक जिले को जोड़ता है। यह जबलपुर नागपुर को जोड़ता है।

सिवनी जिले में रेल सन् 1904 में बंगाल नागपुर नैरोगेज रेल्वे का प्रारंभ हुआ।

सिवनी जिले का मुख्य आकर्षण केंद्र टाइगर सेंचुरी है। यह आकर्षक पर्यटन क्षेत्र के रूप में पेंच राष्ट्रीय उद्यान बहुत प्रसिद्ध है।

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ