क्या आपको पता है छिंदवाड़ा जिले की सबसे प्राचीन मूर्ति के बारे में ??
छिंदवाड़ा की सबसे प्राचीन मूर्ति एक सिद्ध देवी की है। मां सिद्धिदात्री देवी के नाम से जानी जाती हैं।
जैसा कि हमें पता है छिंदवाड़ा शहर अधिकतम 300 साल से 500 साल तक पुराना माना जाता है अर्थात छिंदवाड़ा नगर का इतिहास इतना पुराना नहीं है। जितनी कि मां सिद्धिदात्री देवी की हजार साल से भी अधिक पुरानी मूर्ति का इतिहास है।
जनश्रुति के अनुसार किसी समय छिंदवाड़ा गांव रतन गौली नामक सरदार के अधीनस्थ था। इसके पश्चात अयोध्या से आए रतन रघुवंशी ने रतन गौली को मारकर अपने अधीनस्थ कर लिया। तद् अनुसार छिंदवाड़ा शहर का इतिहास प्रमाणों सहित लिखित अवलोकन में प्राप्त होने लगा।
छिंदवाड़ा की 1000 वर्ष से भी अधिक अर्थात सबसे प्राचीन मां सिद्धिदात्री देवी की मूर्ति, छिंदवाड़ा शहर के ही एक मंदिर में प्रतिष्ठापित है। देवी जी की यह मूर्ति लगभग 1050 वर्ष प्राचीन है।
मां सिद्धिदात्री देवी के नाम से प्रसिद्ध माताजी की यह मूर्ति बहुत ही सिद्ध मूर्ति है।
मां सिद्धिदात्री देवी की मूर्ति छिंदवाड़ा से 28 किलोमीटर दूर, नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, नीलकंठी कला (गोदड़देव मंदिर) के परिक्षेत्र में, उत्खनन में प्राप्त हुई थी।
उक्त स्थान से उत्खनन पश्चात प्राप्त मां सिद्धिदात्री देवी मूर्ति को मंदिर परिसर में ही रख दिया गया था। श्री एन पी तिवारी, तत्कालीन कलेक्टर, छिंदवाड़ा (सन् 1982 से सन् 1985 के बीच) अपने लघु प्रवास पर नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर देखने पहुंचे। तब उन्हें मां सिद्धिदात्री देवी की यह मूर्ति दृष्टिगोचर हुई(दिखी)।
मां सिद्धिदात्री देवी की यह मूर्ति श्री तिवारी तत्कालीन कलेक्टर महोदय द्वारा छिंदवाड़ा लाई गई। मां सिद्धिदात्री देवी की यह मूर्ति उन्होंने (कलेक्टर महोदय ने) नाजरात (Treasury) में रखवा दी।
स्वप्न में देवी जी द्वारा आभास कराए जाने पर मां सिद्धिदात्री देवी की मूर्ति की प्रतिष्ठापना उन्होंने, कलेक्टर बंगले के बाजू में स्थित दुर्गा जी के मंदिर में करवा दी।
यह भी पढ़ें-
मां सिद्धिदात्री देवी की यह मूर्ति काफी सिद्ध है।
यहां माना जाता है कि भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।
वर्तमान में मां सिद्धिदात्री देवी की मूर्ति को ऑयल पेंट कर दिया गया है। प्राय: कलेक्टरेट मंदिर जाकर मां सिद्धिदात्री देवी मूर्ति के प्रतिदिन दर्शन किये जा सकतें हैं।
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर नीलकंठी कला तथा एक अन्य मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय द्वारा करवाया गया था। राजा कृष्ण तृतीय राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रतापी शासक था। राजा कृष्ण तृतीय का कार्यकाल सन् 939 ईसवी से सन् 967 ईसवी तक रहा है।
राजा कृष्ण तृतीय के पूर्वज राजा कृष्ण प्रथम ने एलोरा का विश्व प्रसिद्ध ही नहीं, बल्कि विश्व के महानतम आश्चर्य में से एक, प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण करवाया था। यह विशालकाय कैलाश मंदिर बिना किसी जोड़ के एक ही विशालकाय पहाड़ नुमा शिला/पत्थर से निर्मित है। कारीगरों द्वारा की गई अनूठी कारीगरी दर्शनीय है।
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर नीलकंठी कला( गोदड़ देव मंदिर) क्षेत्र में राजा कृष्ण तृतीय के दो शिलालेख मिले हैं। इन शिलालेखों में राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख किया गया है। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पास पहाड़ी पर दो और अन्य शिव मंदिर के भग्नावशेष भी मौजूद हैं।
जनश्रुति अनुसार यहां द्वादश ज्योतिर्लिंग के मंदिर बने हुए थे। परंतु अब अन्य मंदिरों के अवशेष विद्यमान नहीं हैं।
मां सिद्धिदात्री देवी की यह मूर्ति कम से कम 1050 वर्ष प्राचीन है। यह छिंदवाड़ा की सर्वाधिक प्राचीन देवी जी की सिद्ध मूर्ति है।
छिंदवाड़ा के सब्जी मंडी रोड या गुरैया रोड, पुराने गुरैया नाके के पास, कलेक्टर बंगले के गेट के बाजू में, स्वामी शिवोम तीर्थ आश्रम एवं मां दुर्गा जी का मंदिर स्थित है।
मां दुर्गा जी के इस मंदिर में ही, मां सिद्धिदात्री देवी विराजित है। आप कभी भी यहां मां सिद्धिदात्री देवी के दर्शन कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें-
6 टिप्पणियाँ
Thanks for giving great information
जवाब देंहटाएंGurat me asi murti hai mere pas usaka photo hai
हटाएंGreat
जवाब देंहटाएंawesome information
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही रोचक एवं विस्मयजनक जानकारी इस आलेख के माध्यम प्राप्त हुई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएं